हम डाक कबूतर हैं मेरे दोस्त गले में तावीज़ पहने घूम रहे हैं, हम डाक कबूतर हैं मेरे दोस्त गले में तावीज़ पहने घूम रहे हैं,
देखते बनती थी, चमक अक्षरों की देखते बनती थी, चमक अक्षरों की
क्योंकि उनकी पत्रिका कविता प्रकाशित करने के लिए नहीं छपती थी। क्योंकि उनकी पत्रिका कविता प्रकाशित करने के लिए नहीं छपती थी।
कोई बाहर का आकर रोज़ मुझे पकड़ता है, ज़मीन पर ज़ोर-ज़ोर से रगड़ता है, कोई बाहर का आकर रोज़ मुझे पकड़ता है, ज़मीन पर ज़ोर-ज़ोर से रगड़ता है,
कुछ जनाजे मसान की तरफ भी गए थे जहाँ वे चिताओं में जलकर राख हो गए थे कुछ जनाजे मसान की तरफ भी गए थे जहाँ वे चिताओं में जलकर राख हो गए थे
त्याग, सेवा ही धर्म है प्रजा-हित ही राज धर्म। त्याग, सेवा ही धर्म है प्रजा-हित ही राज धर्म।